बीज उपचार के लिए हमे एफ.आई.आर को अपनाना चाहिए। जिसके लिए सर्वप्रथम कवकनाशक थियोफेनेटमिथाइल (45%) + पायरेक्लोस्टीबिन (5% एफएस) @ 3 मिली/कि.ग्रा. बीज, उसके बाद कीटनाशक थायोमथोक्सोम (70 डब्ल्यू एस) @ 3 ग्रा./कि.ग्रा. बीज और अंत में कल्वर ब्रेडीराइजोबियम कल्वर एवं पी. एस. बी. @5 ग्रा./कि.ग्रा. बीज के हिसाब से उपचारित करके बुवाई करनी चाहिए।
बुवाई का तरीका :-बीज दर बीज के आकार के अनुसार 65-75 कि.ग्रा./हे. बीजदार जिसमें न्यूनतम 70% अंकुरण क्षमता हो रखना चाहिए। सोयाबीन को 30-45 से. मी. कतार से कतार और 5-8 से.मी. पौधे से पौधे की दूरी पर एवं बीज बोने की गहराई 3-5 से.मी. रखनी चाहिए।
बुवाई : सोयाबीन को 20 जून से 5 जुलाई तक बुवाई करना चाहिए। ब्रोड बेड एंड फरो (बी.बी.एफ.) मशीन से सोयाबीन की सीधी बुवाई करके कम लागत के साथ अधिक उत्पादन प्राप्त किया जा सकता है। ब्रोड बेड एंड फरो (बी.बी.एफ.) इस मशीन में बेड पर बुआई की जाती है और साथ ही दो नालिया बनाई जाती, जिससे अत्याधिक वर्षा की दशा में जल भराव की समस्या का आसानी से निदान हो जाता है बिना किसी अतिरिक्त खर्च के और जब वर्षा में कमी होने की दशा में नालियो द्वारा सिंचाई कर फसल को खराब होने से बचाया जा सकता है।
खाद एवं उर्वरक प्रबंधन :- सोयाबीन फसल में अधिक उत्पादन लेने के लिए उचित पौषाक तत्व प्रबंधन होना अति आवश्यक है जिसके लिए नाइट्रोजन, फास्फोरस, पोटेशियम और सल्फर कि.ग्रा./हे, को 25:60:40:20 के अनुपात की दर से मिट्टी परीक्षण के आधार पर करना चाहिए। गोबर खाद 10-20 टन/हे. या वर्मी कम्पोस्ट / नाडेफ खाद 5 टन/हे. की दर से उपयोग करना लाभदायक होता है। नत्रजन की पूर्ति हेतु आवश्यकता अनुरुप 50 कि.ग्रा. / हे किसान यूरिया का उपयोग अंकुरण पश्चात डोरे के साथ करें। जिंक सल्फेट 25 कि.ग्रा. / हे. की दर से मिट्टी परीक्षण के अनुसार प्रयोग करें।
खरपतवार नियंत्रणसोयाबीन के कम उत्पादकता के विभिन्न कारणों में खरपतवार एक प्रमुख कारण है जिसका उचित प्रबंधन उचित समय पर करना अतिआवश्यक है अन्यथा फसल की 15-45% उत्पादन क्षमता प्रभावित होती है। सोयाबीन में बोकना, फूलनी, सांवा बड़ी दुधी ऐदि खरपतवार हानि पहुँचाते है। सोयाबीन फसल को बुआई से 40 से 45 दिनो तक खरपतवार मुक्त रखना आवश्यक है। बुवाई के बाद एवं अंकुरण के पहले (पी.ई.) डायक्लोसुलाम 26 ग्राम प्रति हेक्टेयर के हिसाब से बुवाई के 3 दिनो के अन्दर खेत में छिड़काव करना चाहिए। बोवनी के 15-20 दिन (पी.ओ.ई.) एमेजेथायपर (10SL) @1.0ली. या प्रोपेक्वीजाफोप (10EC) @0.5-0.75 कि.ग्रा. या फेनोक्सीप्रोप-पी-इथायल (9.3EC) @1.0ली. या एमेजेथायपर + एमेजमेक्स (35%+35% wg) या प्रोपेक्वीजाफोप (2.5%) + एमेजेथायपर (3.75%) @2ली. प्रति हेक्टेयर की दर किसी एक का छिड़काव करना चाहिए।
किट प्रबंधन:-सोयाबीन में प्रमुख रुप से चक्र भृंग, तना एवं तम्बाकू की इल्ली से हानि होती है।
तना मक्खी:-थायरोमेथेक्सोम 75% WS @3gm/kg बीज बीजोपचार
क्लोरेंट्रानिलिप्रोल (कोराजन) 18.5 FS @150ml/हे.
लेम्बडा सयहेलोथ्रिन 4.9 sc @300 मि.ली./हे.
चक्र भृंग:-थायक्लोप्रिड 21.7 SP @750 मि.ली./हे. या ट्राईजोफोस 40 EC @800 मि.ली./हे.
या प्रोफेनोस 1000 मि.ली./हे. या कोराजन @ 150 मि.ली./हे.
तम्बाकू की इल्ली:-फेरोमन जाल का प्रयोग करे
क्लोरेंट्रानिलिप्रोल (कोराजन) @ 150 मि.ली./हे.
एन्डोक्साकर्य 333 मि.ली./हे.
रोग प्रबंधन:-सोयाबीन फसल पर विभिन्न कारको (फफूंद, शुक्राणु, विषाणु सुत्रक्रमी) के माध्यम से विभिन्न रोगों का प्रकोप होता है। रोग के लिए आवश्यक अनुकूल वातावरण में प्रकोप होने पर सोयाबीन उत्पादन में लगभग 5 से 90% तक की कमी आती है, अतः यह आवश्यक है कि इन रोगों के आधार पर पहचान कर इनका प्रबंधन किया जाए।